इतना तो ज़िंदगी में, न किसी की खलल पड़े,
हँसने से हो सुकून, न रोने से कल पड़े,
मुद्दत के बाद उसने, जो की लुत्फ़ की निगाह,
जी खुश तो हो गया, मगर आँसू निकल पड़े।
कहाँ छिपाऊं खुद से खुद को,
खुद से इतनी शर्मिंदगी हो गई है
मौत का डर यहां किसको है यारों,
यहां मौत से बद्तर जिंदगी हो गई है ।
खुद से इतनी शर्मिंदगी हो गई है
मौत का डर यहां किसको है यारों,
यहां मौत से बद्तर जिंदगी हो गई है ।
इस मोहब्बत की किताब के,
बस दो ही सबक याद हुए,
कुछ तुम जैसे आबाद हुए,
कुछ हम जैसे बरबाद हुए।
बस दो ही सबक याद हुए,
कुछ तुम जैसे आबाद हुए,
कुछ हम जैसे बरबाद हुए।
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